होली का पौराणिक महत्व
होली का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। सबसे प्रसिद्ध कथा भक्त प्रह्लाद और उनके पिता हिरण्यकश्यप से जुड़ी है। जब दानव राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ने के लिए मजबूर किया, तो प्रह्लाद ने इनकार कर दिया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान था, प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन भगवान की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जलकर भस्म हो गई। यह घटना यह संदेश देती है कि सत्य और भक्ति की हमेशा विजय होती है।
समाज में एकता और प्रेम का संदेश
होली का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यह समाज में सभी भेदभाव मिटाने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन छोटे-बड़े, गरीब-अमीर, ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं रहता। सभी लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं, गले मिलते हैं और प्रेम और भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।
होली के विभिन्न रूप
भारत के विभिन्न हिस्सों में होली अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है:
- ब्रज की लठमार होली: बरसाना और नंदगाँव में महिलाएँ पुरुषों पर लाठियाँ बरसाकर उन्हें रंगों से सराबोर करती हैं।
- मथुरा-वृंदावन की फूलों की होली: यहां रंगों के बजाय फूलों से होली खेली जाती है, जो भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम को दर्शाती है।
- शांतिनिकेतन की बसंती होली: रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे ‘बसंत उत्सव’ के रूप में मनाना शुरू किया, जिसमें गीत, नृत्य और कला का विशेष स्थान होता है।
- हरियाणा की धुलंडी: यहाँ भाभियाँ अपने देवरों को रंगों से भिगोकर मज़ाक करती हैं।
पर्यावरण अनुकूल होली की आवश्यकता
आजकल होली में रासायनिक रंगों और जल अपव्यय की समस्या बढ़ रही है। ऐसे में हमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग करना चाहिए और पानी की बचत करनी चाहिए ताकि यह त्योहार पर्यावरण के लिए नुकसानदायक न बने।
निष्कर्ष
होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि यह जीवन में प्रेम, सद्भावना और अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह त्योहार हमें एक-दूसरे के साथ खुशियाँ बाँटने और सभी मतभेद भुलाने का संदेश देता है। इसलिए, इस होली को सिर्फ रंगों से नहीं, बल्कि दिलों से भी मनाएँ
पूर्णेंदु कुमार की रिपोर्ट